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धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होये |
माली सींचे सौ घडा, ॠतु आये फल होये ||
माटी कहें कुम्हार से, तु क्या रोदें मोय|
एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौंदुंगी तोय | |
माया मरि ना मन मरा, मर मर गया शरीर |
आशा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबिर ||
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बहुत से लोग ऐसे है, जो आरकुट व फेसबुक मे केवल टाईम पास किया करते है, दोस्तों से हंसी मजाक करना अच्छी बात है, यदि आप थोडा सा समय अपने पंथ के लिए अपने सभी मानिकपुरी मेबर्स के लिए निकले तो क्या बुरा है.................,
आप सभी बहुत समझदार व शिक्षित हैं कभी अपने स्वार्थ के लिए नहीं हमारे समाज के लिए सोचो कितना पीछे है हमारा मानिकपुरी समाज ..................................................,,,,,,,,
ये सब सोचने के लिए किसी के पास इतना टाइम ही नहीं है, जब समय हाथ से निकल जाता तब ही इन्सान सोचा करता है, इंसान की यही फितरत है, ..............
"किसी गांव में एक यक्ति था काफी धन दोलत थी उसके पास समाज में एक अच्छी इज्जत थी उसकी तीन बेटियां थी तीनो को खूब पढाया लिखाया , जब विवाह योग्य हो गयी तो उनके काबिल कोई भी व्यक्ति समाज में नहीं मिल रहा था, पिता बहुत परेशान सा रहने लगा. पर एक दिन एक इनसे परिवार से रिश्ता आया, उसके यहाँ की उसने अपनी लड़की की शादी तय कर दी. लड़का किसी बहुत बड़ी कम्पनी का मालिक था. पिता ने सोचा दुबारा इंसा परिवार नहीं मिलेगा और विवाह कर दिया. धीरे धीरे ८-९ महीने में ही पिता बहुत पछताया..............क्योंकि लड़का किसी कम्पनी का मालिक नहीं था. लड़के के परिवार वाले चेहरे से बहुत ही भोले व मीठी मीठी बातें करते थे पर झूठे और मक्कार थे."
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